परिस्थितियां कितनी भी गंभीर ही क्यों न हो, कभी घबराना नहीं चाहिए।

कभी भी हार मत मानो, चाहे स्थिति कितनी भी गंभीर क्यों न हो। यदि आप कुछ पाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, तो आप हमेशा सफल रहेंगे।

एक समय था जब जेमी एंड्रयू पर्वतारोहरण किया करते थे. परन्तु किसी दुर्घटना में उन्होंने अपने हाथ-पैर खो दिए। परन्तु अपने हाथ-पैर खो जाने के बाद भी उन्हीने कभी हार नहीं मानी। अपने हाथों और पैरों को खो जाने के बाद भी उन्होंने स्विट्जरलैंड के जर्मेट के पास 14,691.6 फीट ऊँचे मैटरहॉर्न पर्वत पर चढ़ कर ख़िताब जीता।

मिशन में एंड्रयू जोन्स के साथी स्टीव जोन्स थे, जबकि यूरोप के सर्वोच्च शिखर पर उनका रास्ता था। यह आल्प्स पर्वत और यूरोप की सबसे ऊंची चोटी है। इतनी ऊंचाई पर वे अपने हाथ-पैरों के होते हुए भी नहीं चढ़ पाए थे। इस छोटी पर चढ़ने की शुरुआत 1865 से हुई और तब से अब तक लगभग 500 से अधिक पर्वतारोहियों की मौत हो चुकी है।

आज वे 44 साल के हैं। 15 साल पहले उन्होंने अपना यह अपरिवर्तनीय साहस दिखाया था। जेमी एंड्रयू और उनके दोस्त जेमी फिशर दोनों मिलकर मोंट ब्लांक के 4000 मीटर ऊंचे लेस ड्रोट्स माउंटेन में चढ़ाई करते हुए एक बर्फीले तूफान में फंस गए। बर्फीली हवाएं 90 मील प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही थीं। वे दोनों 4 दिनों तक वहीँ फंसे रहे.

जिसमें बर्फीली ठण्ड के कारण फिशर की वहीँ मौत हो गई। उसके बाद एक बचाव दल आया और वह एंड्रयू को वहाँ से बाहर ले आया, लेकिन उसके हाथ और पैर ठंड से बुरी तरह जम गए थे। डॉक्टरों के पास उसके हाथ-पैर काटने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। ऑपरेशन के बाद उन्होंने प्रोस्थेटिक अंगों को अपनाया। एंड्रयू कुछ साल बाद पहाड़ों पर लौट आए। उन्होंने ईडनबर्ग में एक छोटी पहाड़ी पर चढ़ने का अभ्यास शुरू किया।

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