जीवन की हर मुश्किलों में अपना साहस न छोड़ें।
एक समय की बात है एक मेंढकों का समूह जंगल की यात्रा पर निकला, सभी मेंढ़क अपनी-अपनी मस्ती में उछल कूदकर गुज़र रहे थे। रास्ते में एक गहरा गड्ढा आया तो दो मेंढ़क मस्ती करते-करते गड्ढे में गिर गए और गड्ढे के बीच एक पत्थर पर अटक गए। जब अन्य मेंढकों ने यह देखा की गड्ढा बहुत गहरा है तो वे उन्हें कहने लगे कि इस गड्ढे से बाहर निकलना नामुमकिन है।
लेकिन फिर भी दोनों मेंढकों ने उनके बातों को नज़रअंदाज़ करके दोनों गड्ढे से बाहर कूदने की कोशिश करने लगे। वो दो-तीन बार कूदे लेकिन फिर वापस गिर जाते थे तो यह देखकर ऊपर वाले सभी मेंढकों ने कहा कि चाहे तुम कितनी भी कोशिश कर लो लेकिन इस गड्ढे से बाहर निकलना नामुमकिन है। आखिरकार एक मेंढ़क ने बाहर वाले मेंढकों की बात पर विश्वास कर प्रयास करना छोड़ दिया और गड्ढे में गिरकर मर गया।
लेकिन दूसरे मेंढक ने अपने पूरे जोश से कूदना जारी रखा। एक बार फिर मेंढकों की भीड़ ने उसे चिल्लाते हुए कहा कि तुम कभी बाहर नहीं निकल सकते और बार-बार पत्थर पे गिरने से होने वाले दर्द से अच्छा है की गड्ढे के अंदर गिरकर मर जाओ। लेकिन उसने किसी की नहीं सुनी और वह और ज़ोर से कूदने लगा। वो जितनी ज़ोर से गिरता वो उतना ही जोश के साथ उठकर कूदता और फिर एक बड़ी छलांग के साथ वह बाहर आ गिरा।
सभी मेंढ़क उसे अचरज से देखते रह गए और एक मेंढ़क ने उसे पूछा की हम सब तुम्हें मना कर रहे थे क्या तुमने यह नहीं सुना? वो मेंढ़क सभी मेंढकों को आश्चर्य के साथ पूछने लगा क्या आप मना कर रहे थे? मुझे कम सुनाई देता है तो मैंने गड्ढे के अंदर कुछ सुना ही नहीं उल्टा मुझे तो ऐसा लग रहा था की आप लोग मुझे उस समय प्रोत्साहित कर रहे थे।