आशीष की कहानी, जिसे उसकी भैया की दयालुता ने रिश्तों के महत्व के बारे में समझाया।
रमन और आशीष के माता-पिता एक हादसे में गुजर गए थे। लिहाजा रमन ने बचपन से ही छोटा-मोटा काम करना शुरू कर दिया था और उसी की थोड़ी-बहुत कमाई से घर चलता था। ऐसा करते-करते कुछ साल बीत गए। आशीष को दुनियादारी समझ आने लगी थी। आशीष अपने भाई रमन का चहेता था। रमन उसे बेहद प्रेम करता था और बड़े लाड़-प्यार से पालता था।
एक दिन रमन और आशीष एक बड़ी-सी बेकरी के पास से गुजर रहे थे। आशीष को बड़े जोर की भूख लगी हुई थी। जब दोनों भाई बेकरी के सामने से गुजर रहे थे, तो आशीष ने रमन की तरफ सिर उठाकर देखा और फिर सिर नीचे कर लिया। रमन समझ गया कि आशीष को बेकरी से कुछ लेना है। लेकिन रमन के पास कुल पचास रुपये ही थे। उसको पता था कि अगर उसने उसमें से जरा भी खर्च किया, तो अगले एक हफ्ते तक उसके पास दोपहर के खाने के लिए पैसे नहीं बचेंगे।
रमन बिना ज्यादा सोचे बेकरी में घुस गया और वहां से आशीष के लिए बीस रुपये का बर्गर ले आया। रमन ने उसे बर्गर देते हुए कहा, इसे कहीं सुरक्षित जगह पर बैठकर खाओ, वर्ना बंदर छीनकर भाग जाएंगे। यह बोलकर रमन उसके लिए पानी लेने चला गया। रमन जैसे ही वहां से निकला, आशीष बर्गर लेकर वहीं फुटपाथ पर बैठकर खाने लगा। वह बर्गर मुंह में डालने ही वाला था कि पीछे से एक बंदर लपका और उसकी बर्गर उड़ाकर भाग गया। कुछ देर में रमन वापस लौटा।
रमन आशीष को लेकर आगे चल दिया। कुछ देर बाद वे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर पहुंचे। रमन ने आशीष से कहा, तुम बैठो, मैं जरा कुछ काम करके आता हूं। तुम्हारा पानी और खाना पैकेट में रखा है। आशीष को भूख बहुत तेज लगी थी। उसने जैसे ही पैकेट खोला, देखा कि उसमें एक और बर्गर रखा हुआ था। आशीष ने रमन की तरफ देखा, तो वह मुस्करा रहा था। रमन ने हंसते हुए कहा, क्यों, अब से भैया की बात सुनोगे न?