मनुष्य का सौंदर्य यह तय नहीं करता कि वह कितना ऊपर जाएगा, बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि वह अंदर से क्या सोचता है।
एक बच्चा रोज अपनी कॉलोनी में बैलूनिस्ट को आते देखता था। हर सुबह बैलूनिस्ट अपनी साइकिल कॉलोनी के नुक्कड़ पर लगाकर गुब्बारे बेचता था। रात में वह साइकिल से घर जाता था। उसके पास कई रंगों के गुब्बारे थे। लाल, पीला, हरा, गुलाबी, नीला, सफेद और काला। उनकी एक खास बात थी कि जब भी उनके गुब्बारों की बिक्री कम होने लगती थी तो वह सबसे खूबसूरत गुब्बारे को जल्दी-जल्दी उड़ा देते थे।
उड़ता हुआ गुब्बारा देखकर फिर कई बच्चे उसके पास पहुंच जाते थे। बच्चा इस पूरी प्रक्रिया को रोज देख रहा था और एक दिन वह बैलूनिस्ट के पास पहुंचा। वह स्थिर निगाहों से उसे देख रहा था। बैलूनिस्ट अपने काम में तल्लीन था, गुब्बारे फुलाकर साइकिल से बांध रहा था। वह चारों तरफ से बच्चों से घिरा हुआ था। कोई कह रहा था अंकल वो हरा दे दो तो कोई कहता है अंकल मुझे लाल गुब्बारा चाहिए।
वह एक-एक कर सभी को गुब्बारे दे रहा था। जब बच्चों की भीड़ खत्म होने लगती तो वह एक गुब्बारा उड़ा देता और भीड़ फिर जमा हो जाती। बगल में खड़ा बच्चा दिखाई नहीं दे रहा था। उसने मासूम से गुब्बारों से पूछा, अंकल, काला गुब्बारा गिराओगे तो ऊपर भी जाएगा? बच्चे की मासूमियत पर बैलूनिस्ट मुस्कुराने लगा। उन्होंने कहा, हां ऊपर जाएगा। उन्होंने आगे बच्चे को समझाया कि गुब्बारे का रंग यह तय नहीं करता कि वह ऊपर जाएगा या नहीं।
लेकिन उसके अंदर क्या है यह तय करता है कि वह उड़ेगा या नहीं, इसी तरह, हम इंसानों की सुंदरता या कपड़े यह निर्धारित नहीं करते हैं कि यह कितना ऊंचा होगा। वह जीवन में किस मुकाम पर पहुंचेगा? उसकी सफलता उसके बाहरी रूप पर निर्भर नहीं करती है, बल्कि इस बात पर निर्भर करती है कि आप अंदर से क्या सोचते हैं? हमारी सोच ही हमारी ऊंचाई तय करती है।